Tuesday, September 23, 2014

कलश पूजा मन्त्र

कलश पूजा मन्त्र

                       ओ३म् अकलरूप मनसा उपराजी। तामा पांच तत्व होय राजी। आकाश वायु तेज जल धरणी। तामा सकल सृष्टि की करणी। ता समरथ का सुणो विचार, सप्तदीप नवखण्ड प्रमाण। पांच तत्त्व मिल इण्ड उपायों। विगस्यो इण्ड धरणि ठहरायों। इण्डे मध्ये जल उपजायो। जलमां विष्णु रूप उपन्यो। ता विष्णु को नाभिकंवल बिगसानों। ता मां ब्रह्मा बीज ठहरानों। तां ब्रह्म की उतपति होई, भानै घड़ै सवारै सोई। कुलाल कर्म करत है सोई, पृथिवी ले पाके तक होई। आदि कुम्भ जहां उपन्यो। सदा कुम्भ प्रवत्र्तते। कुम्भ की पूजा जे नर करते, तेज काया भौखण्डते। अलील रूप निरंजनों। जंाके न थे माता, न थे पिता न थे कुटुम्ब सहोदरम्। जो नर करै ताकी सेवा। ताका पाप दोष क्षय जायंते। आदि कुम्भ कमल की घड़ी, अनादि पुरूष ले आगे धरी। बैठा ब्रह्मा, बैठा इन्द्र, बैठा सकल रवि अरू चन्द। बैठा इश्वर दो कर जोड़। बैठा सुर तेतीसों कोड़। बैठी गंगा यमुना सरस्वती। थरपना थापी बाल निरंजन गोरख जति। सत्रह लाख अठाइस हजार, सतयुग प्रमाण। सतयुग के पहरे मां, सोने को घाट, सोने को पाट, सोने को कलश, सोने को टको। पांच क्रोड़ां के मुखी गुरू श्री प्रहलाद जी कलश थाप्यो। वैकलश जस धर्म हुवै सो इस कलश हुइयो। 1। बारह लाख छयानवे हजार, त्रेता युग प्रमाण। त्रेतायुग के पहरे में रूपे को घाट,रूपे को पाट, रूपे को कलश, सोने को टको। सात क्रोड़ा कै मुखी, राजा हरिशचन्द्र तारादे रोहितास कलश थाप्यो। वैकलश जस धर्म हुवै सो इस कलश हुइयो। 2। आठ लाख चौसठ हजार, द्वापर युग प्रमाण। द्वापर युग के पहरे में तांबे को घाट, तांबे को पाट, तांबे को कलश, रूपे को टको। नवक्रोड़ां के मुखी राजा युधिष्ठर, कुन्तीमाता, द्रोपदी पांचे पाण्डवै, कलश थाप्यो। वैह कलश जस धर्म हुवै सो इस कलश हुइयो।3। चार लाख बत्तीस हजार, कलियुग प्रमाण कलियुग के पहरे में माटी को घाट, माटी को पाट, माटी को कलश, तांबा को टको। अन्नत क्रोडय़ा कै मुखी गुरू जम्भेश्वर महाराज कलश थाप्यो। वैकलश जस धर्म हुवै सो इस कलश हुइयो।4। श्री जम्भेश्वर महाराज भलो हुवै सो करियो, ओ३म् विष्णु तत् सत्।

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