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Tuesday, September 23, 2014

धर्मशाला

मुकाम-■ पंचायती धर्मशाला 01531-266635
■ जगद् गुरु जम्भेश्वर संस्कृत विद्यालय 01531-266726,266655
■मुकाम पीठाधीश्वराचार्य स्वामी रामानन्दजी 9414429276
■ बालकराम आश्रम 01531-266033
■ स्वामी भागीरथदासजी शास्त्री 9413126632
■ बीकानेर- कोर्ट के पास 0151-250278
■ जयपुर-ई.एस.आई. होस्पीटल के सामने,अजमेर रोड़,सोडाला 0141-2224547
■ जोधपुर-गणेश चैक, रातानाडा, जोधपुर 9414410729
■ नागौर- रेल्वे स्टेशन के पास 01582-245126
■ फलोदी- हाई स्कूल के पास 02925-222387
■ पुष्कर- ब्रह्माजी मन्दिर के पास, सावित्री गली 0145-2772482
■ रायसिंहनगर- रेल्वे स्टेशन के पास 01507-223864
■ संगरिया-डबवाली रोड़ 015 -222669
■ अबोहर-श्री गुरु जम्भेश्वर मंदिर 01634-231433
■ हिसार- बिश्नोई मंदिर 0662-225804
■ डबवाली- चैटाला रोड़ 01668-229260
■ सिरसा- हिसार रोड़ 01666-221958
■ दिल्ली-अपर बेला रोड़,आईपी कोलेज के पास,मैटकोफ हाउस के पास

    011-55761179, 23818898,2460650
■ हरिद्वार--बिश्नोई बाड़ा, भीमगौड़ा के पास 01334-2160301
■ ऋषिकेश-सुभाष चैक, ऋषिकेश,देहरादून 0135-2433467
अन्य धर्मशालाएं-
■ जालोर- भीनमाल रोड़,
■ सादुलशहर- मटिली रोड़,
■ सूरतगढ़- व्हाईट हाऊस के पास,
■ अहमदाबाद- बलियादेव पार्टी प्लोट के पास,
■ छोटेलाल की चाल ओढ़व, बिश्नोई सन्ताश्रम,

तीर्थ स्थान

बिश्नोई समाज में अनेक साथरियां, धाम या तीर्थ स्थान है, जो श्रद्धा के विशेष केन्द्र माने जाते हैं। इनका सम्बन्ध किसी न किसी रूप में गुरु जांभोजी से रहा है। आरम्भ में इन सभी श्रद्धा केन्द्रों को साथरी ही कहा जाता था, परंतु कालांतर में कुछेक विशेष स्थानों को धाम कहा जाने लगा। कवि गोविंदराम ने उस स्थान को साथरी कहा है जो गुरु जांभोजी के चरणों से पवित्र हुआ था। इस विषय में उनके निम्न छन्द द्रष्टव्य है-
वृंदावन की रैण का, पावन सुध सरूप।
ज्यूं जंभगुरु के चरण सूं, भूमि भई अनूप।।
सो भूमि भई साथरी, कहिये कारण कूण।
यह संतों संसय हरो, कृपा करो सुख भूण।।
गुरीष्ट मांहि प्रवीण, जो बुद्धि भंगतां तणी।
निश्चै करै सरूप, ताते कहिये साथरी।।
           बिश्नोई समाज के अत्यंत प्रसिद्ध धाम (साथरी) इस प्रकार हैं-

1. पीपासर नागौर

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यह जांभोजी महाराज का जन्म स्थान है। यहां एक मंदिर बना हुआ है और गांव के पास एक साथरी है जहां पर सन्त रहते हैं। यहां पर दोनों समय (प्रात: सायं) नियमित रूप से यज्ञ होता है।

2. समराथल धोरा

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यह स्थान मुकाम से 3 किलोमीटर दक्षिण में हैं, जहां पर जांभोजी महाराज ने 51 वर्ष तक तपस्या करते हुए धर्म प्रचार किया एवं सम्वत् 1542 में बिश्नोई धर्म का प्रवर्तन किया। वर्तमान में इस स्थान पर विशाल मंदिर बना हुआ है एवं सतों के आश्रम भी बने हुए हैं। 

3. लोहावट



यह स्थान फलौदी से दक्षिण की तरफ जंगल में स्थित है, जहां पर साथरी में मंदिर बना हुआ है। इसी स्थान पर सम्वत् 1584 में जोधपुर के कंवर मालदेव जांभोजी के दर्शन करने आये थे।

4. जांगलू

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जांगलू गांव में एक मंदिर बना हुआ है, जिसमें जांभोजी महाराज की तीन पवित्र वस्तुएं चिंपी, टोपी एवं भगवा चोला सुरक्षित रखा हुआ है। अब इस मंदिर के सफेद संगरमरमर द्वारा विशाल सुंदर रूप दिया गया है। गांव से 2 कोस पश्चिम में एक साथरी है, जहां पर जांभोजी की एक चौकी बनी हुई है। इस स्थान पर जांभोजी ने हवन किया था। पास में कंकेहड़ी का वृक्ष भी है, जिसे जांभोजी ने लगाया था। अब इस स्थान पर बड़ा सुंदर मंदिर बना दिया गया है। जांगलू साथरी और गांव के बीच में एक तालाब बना हुआ है जिसे 'बरींगआळी नाडीÓ कहते हैं और जिसे बरसिंह बनियाळ ने खुदवाया था जो जांभोजी के परमभक्त थे। तालाब के किनारे भी अब एक मंदिर बनाया गया है।

5. रोटू

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रोटू गांव नागौर जिले की जायल तहसील में है। यहां पर एक मंदिर बना हुआ है, जिसे अब और भी विशाल रूप देकर बहुत ही सुंदर बनाया गया है, जिसमें जांभोजी महाराज का पवित्र खाण्डा, जो दूदोजी को भेण्ट किया गया था, सुरक्षित रखा हुआ है। इसी गांव में जांभोजी महाराज जोखे भादू की बेटी उमा (नौरंगी) को भात भरने स्वयं आये थे तथा लोगों की प्रार्थना पर खेजडिय़ों का बाग लगाया था। आज भी उस गांव में बहुतायत में खेजडिय़ां लगी हुई है और यह स्थान अत्यंत सुरम्य बना हुआ है।

6. जांभोलाव




फलौदी से 8 कोस पूर्वोतर में स्थित यह एक बहुत बड़ा तालाब है। जिसे जांभोजी महाराज ने खुदवाया था, जिसका खुदाई का कार्य चेत सुदी 11 सम्वत् 1545 से लेकर लगातार तीन वर्ष चला और चेत बदी अमावस सम्वत् 1548 को बनकर तैयार हो गया। तालाब के उत्तर की ओर पाल के पास जांभोजी का एक मंदिर बना हुआ है, उस मंदिर में जांभोजी का एक आसन है। कहते हैं कि जांभोजी तालाब खुदवाते समय इसी स्थान पर बैठते थे। तालाब से पूर्व की तरफ काफी दूर संतों के दो आश्रम बने हुए हैं जिन्हें 'अगुणी जांगाÓ और 'आथुणी जांगाÓ कहते हैं। यहां पर संत रहते हैं, जो वील्होजी महाराज की एलके आथूणी जागां में रहते हैं और खिदरोजी की एल के संत अगूणी जागां में रहते है।। जाम्भोलाव (जम्भ-सरोवर) पर साल में दो मेले लगते हैं- एक चैत्र की अमावस्या को बड़ा मेला, जिसे सन्त वील्होजी महाराज ने सम्वत् 1648 में चेत बदी अमावस को शुरू किया। दूसरा मेला भादों की पूर्णिमा को लगता है, जिसे माधोजी गोदारा ने शुरू किया। इस कारण इसे माधो मेला भी कहते हैं। इन मेंलों में आकर लोग जम्भ सरोवर में स्नान करते हैं। इस सरोवर का जल गंगा जल की तरह पवित्र माना जाता है। श्रद्धालु स्नान के पश्चात जांभोजी के मंदिर में जाकर दर्शन करते है। और यज्ञ में घी खोपरा की आहुति डालते हैं।
बिश्नोई मंदिरों में केवल हवन ही होता है और यज्ञ की ज्योति में परमात्मा के दर्शन माने जाते हैं किसी प्रकार की मूर्तिपूजा नहीं होती। हवन हेतु घी व खोपरा और पक्षियों के लिए चूगा (अनाज) ही चढ़ावा मात्र होता है।

7. लालासर

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बीकानेर से 18 कोस दक्षिण-पूर्व में बनिया से पूर्व की ओर जंगल में साथरी बनी हुई है। इसमें लगे हुए कंकहड़ी के हरे वृक्ष के नीचे जांभोजी का बैकुण्ठवास हुआ था। यहां हर साल मिगसर बदी 9 को सत्संग व जागरण होता है, जिसमें काफी संख्या में श्रद्धालु पंहुचते है।।

8. लोदीपुर धाम

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यह स्थान मुरादाबाद जिले के मुख्यालय के पास उत्तरप्रदेश में पड़ता है, जहां पर गुरु महाराज ने उत्तरप्रदेश प्रवास के दौरान एक खेजड़े का वृक्ष अपने हाथ से लगाया था, जो आज भी मंदिर के बीचो-बीच खड़ा है। इस वृक्ष को बिश्नोई समाज के लोग बड़ा पवित्र मानते हैं। हर वर्ष चेत की अमावस को एक बहुत बड़ा मेला लगता है, जहां बिश्नोई समाज कें लोग भारतवर्ष के हर कोने से आते हैं और इस खेजड़ के दर्शन करके अपने आप को धन्य समझते हैं। यहां पर बहुत बड़ा हवन होता है, रात्रि को जागरण होता है।

9.मुक्तिधाम मुकाम

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जिला मुख्यालय बीकानेर से 63 किलोमीटर नोखा तथा नोखा-सीकर रोड़ पर 15 किलोमीटर पूर्व में मुकाम गांव स्थित है। यहां पर जांभोजी महाराज का समाधि-स्थल है। जांभोजी महाराज के विक्रम सम्वत् 1593 मिगसर बदी 9 को बैकुण्ठवास के बाद तालवा गांव के निकट मुकाम में एकादशी के दिन समाधि दी गईं इसी सम्वत् की पौष सुदी 2 सोमवार को समाधि- मंदिर की नींव रखी गई और सम्वत् 1597 चैत्र सुदी 7 शुक्रवार को मुख्य मंदिर (निज मंदिर) बनकर तैयार हो गया। यह मंदिर रणधीर जी बावळ, जो कि जांभोजी महाराज के मुख्य और प्रिय शिष्यों में से एक थे, ने बनवाया था। इस मंदिर को बनाते समय कहते हैं कि शाम के समय जब मजदूरों को मजदूरी दी जाती थी तो मजदूरों की गणना करते समय एक मजदूर कम होता था। श्री रणधीरजी बाबल सोवन नगरी से जो अखूट स्वर्ण सीला लाये थे, उसी से वे मंदिर का निर्माण करवा रहे थे, परंतु बीच में ही उनके स्वर्गवास हो जाने के कारण मंदिर का ऊपरी भाग अधूरा रह गया था, जिसे बाद में बिश्नोई संतों ने समाज की सहायता से पूर्ण करवाया था।