Tuesday, September 23, 2014

अमर शहीद शैतानाराम भादु को सत् सत् नमन

अमर शहीद शैतानाराम भादु को सत् सत् नमन...!

जीव दया नित राख
अरु मान गुरु फरमाणो।
वन’जीव तांही तजी
काया, पंथ लाजो शैतानो॥.
"अमर शहीद स्व. शैतानाराम भादु गौरव गाथा"

विश्व में पर्यावरण संरक्षक के रूप में सर्वदा; सर्वोपरी एक मात्र समुदाय
का नाम आता है, बिश्नोई समाज! बिश्नोई समाज के परवर्तक श्री गुरु जांभोजी
ने सामाजिक क्षेत्र में अपने अनुयायियों के जीवन में धर्म को आधार बना
पर्यावरण रक्षण की नींव रखी। उन्होंने अपने अनुयायियों को 29 धर्म नियम
रूपी आधार स्तंभ प्रदान किये जो समूची मानव जाति ही नहीं अपितु प्रकृति व
जीव-जगत के कल्याण से ओत-प्रोत है, जिनमें "जीव दया पालणी, रूंख लीलो नी
घावे" रूपी अनेक परंपराएं प्रदान की जो न केवल बिश्नोई अपितु संपूर्ण
मानव समाज को प्रकृति रक्षा को प्रेरित करती हैं। बिश्नोई जन इन परंपराओं
के प्रति आज भी उतने ही सजल श्रद्धा रखते हैं जितनी की पंथ स्थापना के
समय से। बिश्नोई समाज में ऐसे अनेक वीर-वीरांगनाएं हुए जिन्होंने धर्म
सिद्धांतों पर चलते हुए आत्मपहिष्कार और लोककल्याण को प्रमुखता देते हुए
वन व वन्यजीवों की रक्षा हेतु अहिंसात्मक रूप से आत्मोसर्ग किया।
समूचे विश्व में प्रकृति रक्षा का संचार करते बिश्नोईयों के धर्म नियमों
के प्रति प्रगाढ़ आस्था का एक अदम्य साहसिक उदाहरण हाल ही में घटित हुआ जो
बिश्नोईज्म के इतिहास में एक और स्वर्णिम पन्ना जोड़ गया।
सहादत की यह शौर्य गाथा है स्व. शैतानाराम भादु की जिन्होंने
कर्तव्यपरायणता और समाजनिष्ठा को अपनाते हुए घर, परिवार की परवाह किये
बिना अपने असाध्य देव द्वारा प्रदत्त धर्म नियमों के प्रति संघन श्रद्धा
दिखाते हुए हरिण रक्षार्थ आत्मबलिदान दिया।
शहीद स्व. शैतानाराम का जन्म सालासर ननैऊ गांव के श्री अर्जुनराम जी भादु
के यहां हुआ। धन्य है माता बीरादेवी जिसकी कोख से ऐसे समाजश्रेष्ठी वीर
का जन्म हुआ। सहादत सहयोगी भाई मांगीलाल के साहस को नमन। धर्मपत्नी
पुष्पादेवी व पुत्र पीयुष और पुत्री ज्योति को भी शहीद की सहादत का गौरव
प्राप्त हुआ।
बिश्नोई समाज में वन्यजीवों की रक्षा के लिए 19 वें बलिदानी स्व.
शैतानाराम है जिन्हें प्रत्येक बिश्नोई व प्रकृति प्रेमी हृदय की
गहराईयों है कोटि-कोटि साधुवाद करते हैं। करते हैं शदियां बदलती है तो
मनुष्य अपनी प्रथा-परंपराओं में आमचूल परिवर्तन करते हैं पर बिश्नोई
समुदाय की वन व वन्य जीव रक्षा की परंपरा बदलते दौर में भी ज्यादा मजबूती
के साथ विश्व के सामने आ रही है और प्रकृति संरक्षण को प्रेरित कर रही
है।
जहां कहीं भी वन व वन्यजीवों के लिए बलिदान की बात आए वहां वर्षाकाल की
हरीतिमा की भाँति बिश्नोई समुदाय का नाम अवश्य ही उभर के सामने आता है।
आये भी क्यों नहीं बिश्नोईयों ने वन व वन्य जीवों के रक्षण हेतु
लोककल्याण की भावना से त्याग जो किये है॥ ऐसे ही त्याग का दर्शय गत दिनों
जोधपुर जिले के फलोदी क्षेत्र के ननैऊ गांव के वीर शैतानाराम के रूप में
साकार हुआ। ननैऊ गांव बिश्नोईयों के पवित्र तीर्थस्थल जाम्भोलाव धाम के
समीप ही स्थित है।
इस गांव में सदियों से बिश्नोई जन निवासित है। जिनमें से एक अर्जुनराम जी
भादु इन्हीं के यहां वीर शैतानाराम का जन्म हुआ। गांव व आसपास के क्षेत्र
में बड़ी संख्या में शिकारी प्रवृत्ति के दैत्यक लोग भी रहते है। जो यहां
स्वच्छंद विचरण करते मूक प्राणियों को सताने की कुचेष्टा करते है।आए दिन
घटित होने वाली ऐसी घटनाओं को स्वाभिमानी बिश्नोई लोग नाकाम करते हैं,
कभी-कभी इन से मुठभेड़ भी हो जाती है। इन सब के उपरांत भी बिश्नोई लोग
मृत्यु से बैखोफ इन मूक प्राणियों को ऐसे दो पग वाले हिंसक जानवरों से
बचाने को हमेशा तत्पर रहते है। पिछले दिनों कुछ शिकारियोँ ने ऐसी नापाक
हरकत की जिसे स्व. शैतानाराम ने अपने प्राणो की आहुति देकर नाकाम कर "जीव
दया पालणी" को प्रत्यक्ष रूप से साकार कर दिखाया॥
यह घटना है 28 जनवरी, 2014 की मध्य रात्रि की जब शैतानाराम अपने घर पर सो
रहा था । रात के तकरीबन 12 बजे उन्हें बंदूक चलने की आवाज सुनाई दी। आवाज
सुन उन्हें शिकार गतिविधि का आभास हुआ तो वह अपने भाई माँगीलाल को साथ
लेकर आवाज की दिशा में गाड़ी लेकर त्वरित गति से चल दिये। वहां पहुँचकर
देखा की दो शिकारी हाथ में बंदूक लिए भागे जा रहे थे। शैतानाराम ने भी
गाड़ी उनके पीछे दौङाई। शिकारी भयाकुल होकर भागते हुए रेत के धोरे पर चढ़
खड़े हुए। जीव प्रेमी शैतानाराम ने गाड़ी से उतरते ही उन्हें ललकारा, सहसा
बिश्नोई को पास देख शिकारी भयभीत हो कांपने लगे। इतने में हुंकार भरता
वीर बिश्नोई निहत्था ही उन शिकारियोँ से जा भीङा। बिश्नोई शेर के साहस के
आगे भय की व्याकुलता में कायरतापुर्वक एक शिकारी ने बंदूक चला दी। गोली
सामने खड़े शैतानाराम के जबङे पर जा लगी, जिससे समाजश्रेष्ठी वीर
शैतानाराम भगवान श्री द्वारा प्रदत्त धर्म नियमों और अपने पूर्वजों के
चरणचिन्होँ का अनुसरण करते हुए, हरिण की जान बचाते हुए, मानव समाज के
प्रति जीव रक्षा का आदर्श पेशकर, अपनों की चिंता छोड़ परमसत्ता को प्राप्त
हुए।
उनकी यह सहादत समय के अंत तक समूचे मानव समाज को "जीव दया पालणी" को
प्रेरित करती प्रेरणा स्त्रोत बनी रहेगी॥

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